शनिवार, 31 जनवरी 2009

ग़रीबी

आह, तुम नहीं चाहतीं–

डरी हुई हो तुम

ग़रीबी से

घिसे जूतों में तुम नहीं चाहतीं बाज़ार जाना

नहीं चाहतीं उसी पुरानी पोशाक में वापस लौटना
मेरे प्यार, हमें पसन्द नहीं है,

जिस हाल में धनकुबेर हमें देखना चाहते हैं,

तंगहाली ।

हम इसे उखाड़ फेंकेंगे दुष्ट दाँत की तरह

जो अब तक इंसान के दिल को कुतरता आया है
लेकिन मैं तुम्हें

इससे भयभीत नहीं देखना चाहता ।

अगर मेरी ग़लती से

यह तुम्हारे घर में दाख़िल होती है

अगर ग़रीबी

तुम्हारे सुनहरे जूते परे खींच ले जाती है,

उसे परे न खींचने दो अपनी हँसी

जो मेरी ज़िन्दगी की रोटी है ।

अगर तुम भाड़ा नहीं चुका सकतीं

काम की तलाश में निकल पड़ो

गरबीले डग भरती,

और याद रखो, मेरे प्यार, कि

मैं तुम्हारी निगरानी पर हूँ

और इकट्ठे हम

सबसे बड़ी दौलत हैं

धरती पर जो शायद ही कभी

इकट्ठा की जा पाई हो ।

(रचनाकार: पाब्लो नेरूदा अनुवादक: सुरेश सलिल)

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